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अथा॑ ते अङ्गिरस्त॒माग्ने॑ वेधस्तम प्रि॒यम्। वो॒चेम॒ ब्रह्म॑ सान॒सि ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

athā te aṅgirastamāgne vedhastama priyam | vocema brahma sānasi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अथ॑। ते॒। अ॒ङ्गि॒रः॒ऽत॒म॒। अ॒ग्ने॒। वे॒धः॒ऽत॒म॒। प्रि॒यम्। वो॒चेम॑। ब्रह्म॑। सा॒न॒सि ॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:75» मन्त्र:2 | अष्टक:1» अध्याय:5» वर्ग:23» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:13» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उससे विद्वान् क्या कहें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अङ्गिरस्तम) सब विद्याओं के जानने और (वेधस्तम) अत्यन्त धारण करनेवाले (अग्ने) विद्वान् ! जैसे हम लोग वेदों को पढ़ के (अथ) इसके पीछे (ते) तुझे (सानसि) सदा से वर्त्तमान (प्रियम्) प्रीतिकारक (ब्रह्म) चारों वेदों का (वोचेम) उपदेश करें, वैसे ही तू कर ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। वेदादि सत्यशास्त्रों के उपदेश के विना किसी मनुष्य को परमेश्वर और विद्युत् अग्नि आदि पदार्थों के विषय का ज्ञान नहीं होता ॥ २ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तं प्रत्यन्ये किं वदेयुरित्याह ॥

अन्वय:

हे अङ्गिरस्तम वेधस्तमाग्ने विद्वन् ! यथा वयं वेदानधीत्याथ ते तुभ्यं सानसि प्रियं ब्रह्म वोचेम तथैव त्वं विधेहि ॥ २ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अथ) अनन्तरम् (ते) तुभ्यम् (अङ्गिरस्तम) अङ्गति गच्छति जानाति सोऽतिशयितस्तत्संबुद्धौ तस्मै वा (अग्ने) विज्ञानस्वरूप (वेधस्तम) अतिशयेन सर्वाविद्याधर (प्रियम्) प्रीणाति यत् तत् (वोचेम) उपदिशेम (ब्रह्म) वेदचतुष्टयम् (सानसि) सनातनम् ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। नुह्युपदेशेन विना कस्यचिन्मनुष्यस्य परमेश्वरविषयं विद्युदादिविषयं वा ज्ञानं संभवति तस्मात् सर्वैर्मनुष्यैरुपदेशश्रवणे सदा कर्त्तव्ये ॥ २ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. वेद इत्यादी सत्य शास्त्रांच्या उपदेशाशिवाय कोणत्याही माणसाला परमेश्वर व विद्युत अग्नी इत्यादी पदार्थांच्या विषयाचे ज्ञान होत नाही. ॥ २ ॥